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मे० ॥ था० ॥ २ ॥ ड दिट्ठी समता जोगनी कि रिया, ढोवो तो सही ॥ मे० ॥ प्रथम चार तजी चार ग्रही पर, होवो तो सही ॥ मे० ॥ था० ॥ ३॥ समतिकी करणी दुःखहरणी, लेवो तो सही ॥ मे० ॥ टुक दूर नय पंथ विकार ज्ञान रस, गावो तो सही ॥ मे० ॥ था० ॥ ४ ॥ अंतर तत्त्व विषय म न प्रीति, बोवो तो सही ॥ मे० ॥ एह ज्ञान क्रिया निज गुण रंग राची, थोवो तो सही ॥ मे० ॥था० ॥ ५॥ अशुभ ध्याननां थानक त्रेशठ, खोवो तो सही ॥ मे० ॥ पुण्यानुबंधी पुण्य बीज टुक, बोवो तो सही ॥ ० ॥ ० ॥ ६ ॥ क्रोध मान माया जडता संग, धोवो तो सही ॥ मे॥ एह हरिवाहन यातम रस चाखी, मेवो तो सही ॥ मे० ॥ था० ॥ ७ ॥ काव्यम् ॥ ति० ॥ मंत्रः ॐ ही श्री परम० ॥ क्रि या फ० ॥०॥ इति त्रयोदश क्रिया पद पूजा ॥ १३ ॥ ॥ श्रथ चतुर्दशतपपद पूजा प्रारंजः ॥
॥ दोहा ॥ उपशम रस युत तप जलु, काम निकंदन दार॥ कर्म तपावे चीकणां, जय जय तप सुखकार ॥१॥ ॥ राग बिहाग ॥ युं सुधरे रे सुज्ञानी, अनघ तप ॥ ० ॥ एकणी ॥ कर्म निकाचित बिनकमें
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