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(१६) ॥ ढाल, उलालानी देशी॥ श्छारोधन तप नमो, बाह्य अप्रिंतर नेदें जी ॥ श्रातमसत्ता एकता, पर परणति उबेदें जी ॥१॥ उलालो ॥ उछेद कर्म अनादि संतति, जेह सिकपणूं वरे ॥ योगसंगें श्राहार टाली, जाव अक्रियता करे ॥ अंतर मुहरत तत्त्व साधे, सर्व संवरता करी ॥ निज आत्मसत्ता प्रगट नावें, करो तप गुण श्रादरी ॥२॥
॥ ढाल ॥श्म नवपद गुणमंमलं, चल निकेप प्र. माणे जी ॥ सात नये जे श्रादरे, सम्यक्झाने जाणे जी ॥३॥ उलालो ॥ निारसेंती गुणी गुणनो, करे जे बहु मान ए ॥ तसु करण ईहा तत्त्व रमणे, थाय निर्मल ध्यान ए ॥ श्म शुझसत्ता जल्यो चेतन, सकल सिछि अनुसरे ॥ अक्षय अनंत महंत चिद् घन, परम आनंदता वरे ॥४॥
॥ कलश ॥ श्य सयल सुखकर गुणपुरंदर, सिक चक्र पदावली ॥ सवि लझिविजासिधिमंदर, नविक पूजो मन रुली ॥ उवकायवर श्रीराज सागर, ज्ञान धर्म सुराजता ॥ गुरु दीपचंद सुचरण सेवक, देवचंद सुशोजता ॥१॥इति कलश ॥
॥ पूजा ॥ ढाल ॥ श्रीपालना रासनी देशी॥ जा.
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