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रकं, मुणि सुंदरसूरि थुश्रमहिमा ॥ १२ ॥ इ संति नाद सम्म, दिहि रकं सरइ तिकालं जो ॥ सबोवद्दव र हिउँ, स लहइसुह संपयं परमं ॥ १३ ॥ तवग गयण दिए यर, जुगवर सिरिसोम सुंदर गुरूणं ॥ सुपसाय लद्ध गणहर, विद्या सिद्धिं जण सीसो ॥ १४ ॥ इति श्रीतृतीयं स्मरणं ॥ ३ ॥
॥ अथ तिजयपहुत्त चतुर्थ स्मरण || || तिजय पहुत्त पयासय, अ5 महापामिहेर जुत्ताणं ॥ समय कित्त विश्राणं, सरेमि चक्रं जि
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