SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शकुनविद्यानुं स्वरूप.. साराचे, तें विलक्षण वात विचारी राखी ने ते बधी सिघशे, व्यापारमा लान थशे अने युधमां जीत थशे. .. ११२-हे पूबनार ! तारुं काम सिद्ध श्रशे नहीं, तेथी विचार करी राखेल कामने गेमीने बीजुं काम कर तथा देवाधिदेवतुं ध्यान धर. या शकुननो ए पूरावो ने के रात्रे स्वप्नमां कौआ, घुग्घू , गीध, माखी, मन्चर जोयेल ने अथवा शरीर पर तेल लगामेल ने अथवा काळो सर्प देखेल ने एवं तुं जोश्श. ११३-हे पूछनार! तें जे विचार कयों ने तेनुं फळ सांजळ. तुं को स्थानने अथवा पैसाना लाजने अथवा कोई सजननी मुलाकातने चाहे जे ते सघळु तने मळशे, तारा क्लेश अने चिंताना दिन घणा खरा वीती गया , हवे तारा सारा दिन आव्या . श्रा वातनी सत्यतानुं प्रमाण ए के तारी कांख उपर तिल अथवा मसो अथवा कोई घावनुं चिह्न . ११४-हे पूछनार ! श्रा पासा बहु कल्याणकारी ने, कुळनी वृद्धि अशे, जमीननो लान अशे, धननो लाल श्रशे, पुत्रनो पण लाज देखाय ने अने व्हाला मित्रनुं दर्शन श्रशे, कोश्नी साथे संबंध अशे तथा त्रण महीनानी अंदर विचारेल कामनो लाल श्रशे, गुरुनी नक्ति अने कुळदेवीनुं पूजन कर. आवातनी सत्यतानुं प्रमाण एबे के तारा शरीर उपर बने बाजुए मसा, तिल अथवा घावनुं चिह्न बे. ११-हे पूछनार! ते काणानो लाज तथा साननी मुलाकात विचारी ने, धातु, धन, संपत्ति अने नाबंधनी वृद्धि तथा अगाउनी माफक सन्मान मळवा, विचार्यु ते सर्वे कोश्पण जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003841
Book TitleShakun Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1919
Total Pages120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy