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वचन गुप्ति की सज्झाय मौनपणुं छे एटले वचन गुप्ति बार भेदें तप छे पण ते मध्ये व्युछर्ग के० काउसग तप ते श्रेष्ट छे स्या माटे जे वचनगुप्ति काउसग मां थे। _____E-चोथे गुणठाणे अयोगी भाव साध्य कर्यो स्यामाटे जे समकित थयु एटले अयोगी पणु नीयमा थस्य कालांतर वचन गुप्ति रूप थिरभाव ते अयोगी पणा नु कारण छ।
१०-गुप्ति रुची मुनी गुप्तीइ रम्या पांच समीति छे ते गुप्ति नु कारण छे ए रीतें करता थका थिरता ने वंछता थका तत्व पामें गुण नो संचय करें।
११-मुनि व्यवहार से पण निश्चय नय नी दृष्टि चुके नहीं इस्या मुनि ने निरंतर घणे भावें इन्द्र वदे छ।
काया गुप्ति की सज्झाय __ हे मुनि श्रीजी गुप्ति संभारो ! जेहथी घणो आणंद उपजें मोहनी टलें घाती ४ गले, अमंद के० मोटु केवलज्ञान उपजइ ।
२-घणी क्रिया कष्ट ते देवलोकें जाय शुभ क्रियाई अने अशुभ क्रिया कष्ट अंते नरक गति पामे मात्रै शुभ अशुभ किया बे भव नु बीज छ । ते सारू काय नो व्यापार सर्व तजवो, स्यामाटे ? जे काय योग चंचल भाव छ ते आश्रवनु मूल छइ, एक आत्मा अचल अविकारी छ ।
३-पांच इंद्रीयोना २३ विषय तेनो ए धारक छे वलि काय योग ते नुं गंध हेतु दृढ छे काय योगे नवां कर्म में हवाय ते मार्ट चपल देहछे ते थिर
चेतन
___४-परसंगी अने आल्म वीर्य चलें जेहथी ते काययोग कहिइ अर्ने साताई परम अयोगी छे निर्मल थिर उपयोगी छ ।
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