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मनोगुप्ति की सज्झाय १-मुनि मन नें वस्य करो, आश्रव नुं घर ते मन छे, ममत्व नो रस ते मन छे, मन थिर करे ते यतो कहीइं।
२–वक्र धोड़ा सरिखं मन छ; मोहराजा नो मत्री ते मन छ, आरत रौद्र ए २ जें खेत्र मन छ हे ज्ञाननिधान मुंनी तूं रोकजे । ___ ३–ए साधुनें प्रथम गुप्ति छई, धर्म शुल्क ए २ ध्यान नो कंद ए गुप्ति, वस्तु धर्म चिंतन मां रम्या जे मुंनी ते पूर्णानन्द पणुं ए थकी साधे ।।
४–योग ३ पुदगल मां भेलवे नवां कर्म नई संचे ए रीत योग मां वरतें चपल योगें ए आत्मिक धर्म नहीं ।
५-योग चपलता परसंगी पणु ए साधन पक्षे नहीं माटें योग ३ चारित्र ने सहकारी पणे वरतावै निपुण मुनी।
६-विकल्प सहित साधन ध्यानवाला ने गमे नहीं ते माटे निरविकल्प अनुभव रस साधे ते आत्मानन्दी थाई।
७-जे व्यवहारथी रत्नत्रयी साधतां भेद पमाड़े क्लेश करावें ते साधन मेलु जाणवू, मन-वचन काय ए ३ गुणे उत्कृष्टवीर्यनी एकताइं जे साधे ते निर्मल आत्मानो आचार।
८-उजल ध्यान श्रुत आलम्बन ए पण साधन नो दाव छ वस्तुधर्म ते आत्म धर्म मां उछरंग पणुं मात्रै गुणी अने गुण एक सभागे छ।। ___-परनी साहाज्ये गुणे वरतं ते आत्म धर्म न कहीई । साध्य मां रमी छ चेतना जेहनी एहवा साधु ते चित्त मां परनुं सोहाज्य पणु किम ग्रहें । -१०-आत्म रूची आत्मा मां लय पाम्याँ स्याद्वाद शीलीई अनन्त तत्व ध्यातां थका ज्ञानी मुनी तत्वनी रमणता मां उपशम्या छ ।
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