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मुनिगुण स्तुति की ढाल
भावार्थ - अपने से अधिक गुणी के साथ तथा समान गुणवालेके साथ वसने वाले; परम समाधि के भण्डार; मुनि भवसमुद्र से तरने और तराने के लिये जहाज़ के समान हैं। ८ । समकितवंत संयम गुण ईहता, ते धरवा असमर्थ । सु० । संबेग पक्षी भावे शोभता, कहेता साचो रे अर्थ । सु०।१०।
शब्दार्थ-ईहता=चाहते हुए।
भावार्थ-सम्यग़ ज्ञान और क्रिया युक्त मुनियों की स्तुति के पश्चात संवेग पक्षी मुनियों का वर्णन करते हैं । ये मुनि समकित सहित हैं। और संयम के गुणों को चाहते हैं । परन्तु वर्तमान में किसी कारण से उन गुणों को धारण करनेमें असमर्थ हैं । सम्वेग ( वैराग्य ) पक्ष के भाव से शोभित हैं। चाहे आप नहीं पालते हैं, परन्तु प्ररूपणा तो सच्ची करते हैं ॥ ६ ॥
आप प्रशंसाए नबी माचता, राचता मुनि गुण रंग ।सु०। अप्रमत्त मुनि श्रत तत्त्व पूछवा, सेवे जासु अभंग । १० । ध।
शब्दार्थ-आप प्रशंसाए=निज की स्तुति में । अप्रमत्त अप्रमादी । जासु-उन्हे अभंग-निरंतर ।
भावार्थ-वे अपनी प्रशंसा सुनकर फूलते नहीं हैं । मुनि के गुणरूपी रंग में रंगे हुए हैं; रुची रखते हैं । श्रुत-तत्त्व प्राप्त करने के लिये किसी से कुछ पूछना, पड़े तो सदा तैयार ( अप्रमत्त ) हैं । और विशिष्ट श्रुतधारी पुरुष की अभंग भावों से निरन्तर सेवा करते हैं । १० । सदहणा आगम अनुमोदना, गुणकरी संयम चाल :।सु०। व्यवहारे साची ते साचवे, आयति लाभ संभाल। सु०॥११॥धा
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