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________________ अष्ट प्रवचन माता सज्झाय संकल्प को शून्य बनाना, वाणी से मौन रहना तथा काया से हलन चलनादि क्रियाओं मुनि यदि इस उत्सर्ग मार्ग पर न चल का त्यागना, गुप्तिस्वरूप उत्सर्ग मार्ग है। सके, तब अपवाद स्वरूप पांच समितियों में प्रवृति करे । गुप्ति एक संवरमयी, उत्सर्गिक परिणाम | संवर निर्जर समिति थी, अपवादे गुणधाम ||५|| शब्दार्थं - एक – एकांत रूप से । उत्सर्गिक निश्चय मार्ग । अपवादेंव्यवहार में । भावार्थ उपरोक्त कथन से कोई यह न समझ ले कि उत्सर्ग मार्ग तो उत्तम है और अपवाद मार्ग हीन है । इसलिये कवि दोनों की उत्तमता सिद्ध करते हुए कहते हैं, कि गुप्तियां केवल संवर-मयी हैं । ये नवीन कर्म बंध नहीं होने देतीं । क्योंकि कर्मबंध कषाय और योगोदय से होता है । अतः गुप्तिमार्ग उत्सर्गि ( निश्चयनय) परिणाम स्वरूपी हैं । अपवाद मार्ग भी गुणों का धाम है । यह भी स्वरूप से संवर और निर्जरामय है, तथा निश्चय का कारण है । सत् प्रवृत्तियों द्वारा निर्जरा होती है । असत् प्रवृत्तियों का निरोध समितियों का फलित होने से संवर हो ही गया । द्रव्ये द्रव्यतः चरणता, भावे भाव चरित । | 1 भाव दृष्टि द्रव्यतः क्रिया, करतां शिव संपत्ति –६ शब्दार्थ-द्रव्ये - - द्रव्य से । द्रव्यतः चरणता- -द्रव्य चारित्र । भावे भाव से । भाव दृष्टि - आत्म स्वरूप की ओर लक्ष्य | संपत्ति - मोक्ष रूपी लक्ष्मी । द्रव्यतः क्रिया - आचार | शिव भावार्थ... शुद्ध अन्तरात्मा में रमणता को भाव से ( निश्चय से ) भाव चारित्र कहते है । शुद्ध आत्मस्वरूप के उपयोग सहित गुप्ति - निवृत्ति रूप क्रिया; एवं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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