SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांच समिति-ढालो प्रमादीने मोह पीडे घणु रे, अप्रमादी घरे नवि चार रे, कुडी० तिणे पंच महाव्रत में आदर्या रे, वली छोड्या सर्व अनाचार रे कुडी. २५ आचारथो हुँ हवे नवि चलं रे, सुण मुझ हृदय ! विरतंत रे, कुडी. कुमतिजी ! कहु तुमने एटलु रे, म्हारा साधर्मी जीव अनन्त रे, कुडी० २६ ते सर्वने ते दासपणु दियो रे, ते साले छे मुझ चित्त माय रे, कुडी. शुकीजे ते-पुंठ नवि फेरवे रे, तो पण मुझने दया थाय रे, कुडी० २७ तेथी हुँ देशना बहु विध करू रे, जिहां चाले म्हारो प्रयास रे, कुडी. चेतनजी ने बहुपरे पीछवु रे, तेने बतायु छुस्थिरवास रे, कुडी० २८ ते तो तारे वश फरी नवि होवे रे, तने वोसरावी शिव जाय रे, कुडी० धर्मरायनी. आणने अनुसरे रे, ते तो आनन्दघन महाराय रे, कुडी.२६ तिहां तुझथी नवि पहुँचाय रे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy