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पद संग्रह
(२)
मेरे जिउ क्या मन मइ तं चिंतइ।। इक आवत इक जात निरंतर, इण संसार अनन्तइ ।१। मेरे जिउ० करम कठोर करे जिउ भारी, पर त्रिया धन निरखंतइ । जनम मरण दुख देखे बहुले, चउ गइ मांहि भभंते ।२। मे० काम भोग क्रीड़ा मन करता, जे बांधत हरपते । बेर बेर तेहिज भोगवता, नवि छूटे विलवंतइ ।३। मे० क्रोध कपट माया मद झूलइ, भूरि मिथ्याति भभंतइ। कहें देवचन्द सदा सुखदाई, जिन धूम एक एकतइ ।४। मे०
मेरे प्रीउ क्युन आप विचारौ । कइसै हो कइसे गुणधारक, क्या तुम लागत प्यारो । १ टेक । तजि कुसंग कुलटा ममता कौ, मानौ वयण हमारो । जो कछु झूठ कहूं इनमें तौ, मोकू सूंस तुम्हारो ।२ मे० यह कुनार जगत की चेरी, याकौ संग निवारौ।। निरमल रूप अनूप अवाधित, आतम गुण संभारो ।३। मे० मेटि अज्ञान क्रोध दसम गुण, द्वादस गुण भी टारो।। अक्षय अबाध अनंत अनाश्रित राजविमल पद सारो।४। मे०
राग-मारू
पीयु मोरा हो सांभलि प्रीयु मोरा हो ।
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