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(५३) श्री सद्गुरु प्रार्थना अहो गुरुराज ! राखो मुझ लाज, उगारो आज अहो० दुस्तर भीषण भवोदधि सम संसार , मने घेरी वल्यो मोह सैन्य अनंत अपार ; आ अशरण दीन बाल नी चडो व्हार तुम शरणे आवी ने करूं छुपोकार ओ प्राणाधार ! करो मुझ सार, उतारो पार अहो० १ पर परिणति रति पामे नहीं हृदय निवास , मिथ्यातम हरवाने आपो ज्ञान प्रकाश , सुधारस दिव्य पाने हरो मुझ प्यास रोम रोमे व्याप्यो शुद्ध भावोल्लास बीजी नहिं आस, भक्ति अभिलाष, याचं तुझ पास अहो०२ दहो मुझ अनादीय देहाध्यास अनंग , आपो प्रभु सरला सहज समाधि अभंग ; उछलो घट सहजानंद सलिल तरंग पामैं हूँ निज पद सिद्धि सादि अनंते भंग शुद्धातम रंग सुनिर्मल गंग, पाएँ तुम संग अहो०३
(५४) प्रार्थना ढाल-व्हाला वीर जिणेसर जन्म जरा निवारजो रे । आव्यो तुम शरणे गुरुराज, अरज हृदये धरोरे... पापी अधम पतित खल कामी छु मुझ उधरो रे.. आव्यो०
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