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सम्पादकीय अध्यात्म जगत् के महान् ज्योतिर्धर, विश्ववंद्य, परमपूज्य, प्रातः स्मरणीय, महोपकारी योगीन्द्र-युगप्रधान सद्गुरु-शिरोमणि, अखण्ड आत्मोपयोगी, संत-श्रेष्ठ श्री सहजानन्दघन जी महाराज भारतीय अध्यात्मिक परम्परा की एक विरल विभूति थे। स्वरूप प्राप्ति की उत्कट तमन्ना वाले प्रयोग-वीर पुरुषार्थी, त्याग वैराग्य को साकार मूर्ति, आप जैसे महापुरुष सैकड़ों वर्षों में इने-गिने ही उत्पन्न होते हैं, जिनके बल पर आर्यावर्त को जगद्गुरु पद पर प्रतिष्ठित होने का सौभाग्य प्राप्त है। महापुरुषों के योगबल से ही विश्व तंत्र संचालित-संरक्षित रहता है। आपके महाप्रयाण से अध्यात्मिक जगत् की एक अपूरणीय क्षति हुई है।
आपने अपना साधनाकाल भारत के विभिन्न प्रान्तों के जंगल-पहाड़ों में बिताया और लोक-प्रसिद्धि से दूर रहे। रूढ़िवादी दुषमकाल में उन्हें थोड़े ही व्यक्ति पहिचान पाये क्योंकि आप सम्प्रदायातीत महापुरुष थे। गत बीस वर्षों में मुझे अनेकबार आपके सम्पर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और मैंने समय-समय पर आपकी अभिव्यक्तियों को संग्रह करने की चेष्टा भी की है। रचनाओं के साथ साथ सैकड़ों पत्र एवं मौनकाल में लिख कर दी हुई विकीर्ण पत्राङ्कित पंक्तियों को भी अमूल्य निधि
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