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रटत मंत्र कहें छादन ज्यों, लोहे लोहा धार... मेरे० २ द्वादशांगी मध्य सार यहीं ले, शेष प्रवृत्ति निवार
मध्यमा वाचा जंपे जाप नित्य, करपल्लव क्रम प्यार.. मेरे ० ३ शान्त दान्त गम्भीर धीर मेरे, विद्यागुरु मद टार ; पाठक लब्धि गुरु पद वंदत, सहजानंद अपार• • मेरे० ४
( २ )
अहो ! म्हारा उपाध्याय भगवान् !!
करू' गुरु लब्धि तणा शां गान !!! कृपा करी आरंक बाल ने, दीधुं सुविद्या दान ; विद्याबलेटी अविद्या, प्रगट्युं आतंमज्ञान · · अहो० १
काव्य कोष छंद न्याय व्याकरण, अलंकार ग्रन्थ ज्ञान ; भणी - मणाच्या मात्र थकी तो, थाय न आत्मकल्याण .. अहो० २ द्रव्य-भाव- नोकर्मत्रयी थी, भिन्न स्वरूप निदान ;
ग्रन्थी भेदन स्व-संवेदन, एज सुविद्या प्राण· · अहो ० ३ सिद्धसमी ज्ञायक - वेदी स्थित, ज्ञानमूर्ति ओलखाण ; शि-ज्ञप्ति-स्थिति रत्नत्रयी प्रभु, तन-मंदिर रहे ध्यान • अहो ० ४
एसघलो उपकार आपनो, सहजानंद निधान;
प्रत्युपकारे हुँ असमर्थ करू, भद्र-हृदय थीं प्रणाम... अहो० ५
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