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श्री महावीर स्वामी छः कल्याणक चैत्यवन्दन वीर जिनेश्वर वांदी ने, आणी हृदय उल्लास । तारू कल्याणक ध्यावतां, करिये कर्म नो नाश ॥१॥ सुर आयु पूरण करी, आव्या ब्राह्मणी कूख । इन्द्र अछरूं जोइने, आण्यु मन मां दुःख ॥२॥ श्रेय जाणी प्रभु वीरनु, त्रिशला उदर मझार । ठविया हरण गमेषीए, बीजु कल्याणक सार ॥३॥ जन्म दीक्षा केवल इमे, उत्तराफाल्गुनी जाण। पंच कल्याणक ए हुवा, छट्ठो स्वाति वरकाण ॥४॥ छः कल्याणक वीरना, भाख्यां सूत्र मझार । सेवे सछहे जे भवि, रत्नत्रयी लहे सार ॥५॥
श्री महावीर जिन स्तुति श्री मद्वीर जिनेश्चर मुझ भणी, सेवा फलो ताहरी। षट् कल्याणक ताहरा श्रुत सुणी भांति टली माहरी ॥ जे निंदे अकल्याणक भूत तुझनो, उत्सूत्र भाषी सदा। ते दण्डे निज आत्म निंदक जतो, पामे न बोधि कदा ॥१॥
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