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परिणति परिणामी परिणाम एक ध्याये ;
सहजानंद रस प्रभु वासुपूज्य गुण न्हाये. . .१२ विमलजिन स्तुति १३
सजीवन मूर्ति करी माथे समर्थ नाथ ; पछी शत्रु दल थी करीले बाथम्बाथ ; प्रभु विमल कृपाथी विजय लक्ष्मी करि हाथ ;
त्यां सहजानंदघन थाय त्रिलोकीनाथ...१३ . अनंतजिन स्तुति १४
करी विविध क्रिया ज्यां आश्रव बंध प्रकार ; तोय माने हुं साधु समिति-गुप्ति प्रत धार ; निज लक्ष-प्रतीति-स्थिरता नहिं तिल भार ;
केम पामे अनंतप्रभु ! सहजानंद पद सार...१४ धर्मजिन स्तुति १५
दृग-स्नेह-काम वश दूषित प्रेम-प्रवाह ; प्रत्याहारी प्रभु धर्म-पदे शुद्ध राह ; चित्त कमले ध्यावो प्रभु छबि धरि उत्साह ;
खुले परम खजानो सहजानंद अथाह.. १५ शान्तिजिन स्तुति १६
परिस्थिति वश जे-जे उठे चित्त-तरंग; ते भिन्न तुं भिन्न अतः क्षुभित न हो अन्तरंग ; ठरो शान्त रसे तो प्रगटे अनुभव-गंग ; प्रभु शान्ति पसाये सहजानंद अभंग...१६
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