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अभिनंदन स्तुति ४
थई संत-कृपा ज्यां अभिनंदन-श्रुति-धोध ; जागे सुमति त्यां प्रगटे चिद्-जड़-बोध ; ध्येय-ध्यान एकता रूप ध्याति अविरोध ;
खुले दृष्टि दर्शन सहजानंदधन शोध...४ सुमति जिन स्तुति ५
ज्ञायक सत्ता हूँ सुमति-प्रभु-पद-बीज ; अर्पित उपयोगे अंतरात्म-रस-रीझ ; छूटे जड़-सत्ता-मोह रीझ में खीज ;
बीज-वृक्ष न्यायवत् सहजानंदधन सीझ...५ पद्मप्रभ जिन स्तुति ६
संग युजन करणे चित्-प्रकाश-त्रिकर्म ; गुण करणे शमावी ज्योति-ज्योत स्वधर्म ; जल-पंकथी न्यारा पद्मप्रभु गत भर्म ;
निज-जिन पद एकज सहजानंदघन मम...६ सुपार्श्व जिन स्तुति ७
नभ-रूप-विविधता ज्यां लगी पर्यय-दृष्टि ; पण द्रव्य दृष्टिए अक अखंड समष्टि ; प्रभुता अवलंब्ये प्रगटे निज गुण सृष्टि ;
सुपार्श्व शरण थी सहजानंदधन वृष्टि ; चंद्रप्रभ जिन स्तुति ८
सत्संग सुपात्रे योग-अवंचक नेक ; स्वरूपानुसन्धाने क्रिया अवंचक टेक ;
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