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(१९९) दिव्य सन्देश-चेतन शुद्धि
[राग-ऋषभ जिणंद सुं प्रीतड़ी]
चेतन शुद्धि केम करूं ? कहो परम कृपालु देव ! दयाल !! स्वच्छंदे साधन बहु कर्या, पण तेथी वाधी उलटी जंजाल"चे. १ दिव्य ध्वनिए प्रभु एम कहे, सांभल रे मुमुक्षु ! शुद्धि-प्रकार ; चित्त अशुद्धि जड़ निमित्त थी, देहादिक कर्म तणो व्यभिचार"चे०२ आत्म बुद्धे जड़ संग थयां, तथा जड़ता अबोधता चित्त मझार ; पर जड़ अहं ममता थकी, आपो आप भूली भरो संसार...०३ कर्म-संयोग-पर्याय नी, मूको जड़-ममता-अहंता असार ; उदये राखो चित्त सम रसी, नट-नर्स परे रहो घर के व्हार""दिव्य४ वृत्ति उद्गम स्थले स्थिर करो, जिम रेडिओ पिन रेकार्ड नो संग; चेतन शुद्धि अभ्यास ए, सहजानंदघन कथरोटी-गंग"दिव्य०५ पृ० १३६ में :शुभभाव फल छे देव संपद, अशुभ नारक आपदा; बेड़ी कनक ने लोहनी, स्वाधीनता ना त्यां कदा ! माटे शुभाशुभ उभय छोड़ी शुद्ध भावे स्थिर रहो; देहादि दुख अभाव सहजानंदघन ते पद लहो !! पृ० १३७ में धून:
जब पावे मन गज विश्राम, आपही सेवक आपही स्वाम ।।
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