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सिद्ध तेज निर्वाण छे, निर्वाण ज छे सिद्ध ;
केवल दर्शन-ज्ञान घन, वीर्य-सौख्य समृद्ध ..२३० शुद्ध-उपयोग पसायथी, कारण कार्य स्वरूप ;
___आप-आप-रूपे थया, शुद्धात्मा सिद्ध-भूप...२३१ प्रशस्ति :- १३ कर्णाटे गिरि-गह्वरे, आतम साधन काज;
गुप्त-मौन-असंगता, सिद्ध करवानी दाश • २३२ निज प्रमादने टालवा, कर्यु आ सुप्रयत्न ;
सुज्ञो भूल सुधारजो, करी ने अनुभव यत्न.२३३ ज्ञानी-आशय विरूद्ध जे, कांइ लखायु होय;
निः शल्य भावे तेहर्नु, मिथ्या-दुष्कृत मोय. . .२३४ ईर्षावश कोई अज्ञ दे, अनुभव पथ ने आल ;
तेनी चिन्ता शु करे, तु तारु सम्भाल . २३५ आप्त-बोध प्रमाणिने, पूर्वापर अविरूद्ध ;
निज पुष्टि अर्थे रच्यु, नियम-रहस्य विशुद्ध"२३६ नियमसार-रहस्ये थई, आत्म-वृत्ति नी पुष्टि ;
___ सहज समाधि प्रदायिका, सहजानन्दघन वृष्टि "२३७ परम कृपालु देव अहो ! आप्त परम गुरुराज ;
चरणे करूं समर्पणा, निज सम्पति महाराज "२३८ ॐ शान्ति !
ॐ शान्ति !! ( समाप्ति ता० २५-६-५५ रविवार)
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