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________________ मधुर गिरा अमृत वरसावी, भगवती सूत्र नुं पान करावी ; गौतम प्रश्नोत्तरी...सुणो० ३ तदुपरांत भावना अधिकारे, कथा विक्रम भूपति अति भारे ; श्रवणीय सुरस भरी. सुणो० ४ वाणी सुणी कठीआरा आपे, दूर थया गुरू आप प्रतापे ; ___ अंतर उर्मि ठरी...सुणो० ५ दर्शक पूजक अधिक संख्याए, केई जोड्या व्रत जप तपस्याए ; आपी बूटी खरी...सुणो० ६ अति उपकार कयों गुरू अम पर, पूर्ण चढावो श्राद्ध श्रेणी पर; . त्यां लगी अहिं विचरी...सुणो० ७ भगवती सूत्र ने पूर्ण कर्या विण, संघ रजा आपे कारण किण ; रहेजो स्थिरता करी...सुणो० ८ जो न बुझावे प्यास सरोवर, तो शु गोपद आश हे गुरूवर ! न्याय विचार धरी. • सुणो० ॥ बीड़ खेड़ी ने बाग बनाव्यो, फल आपे कम विण सिंचाव्यो ? तेम अम स्थिति नरी...सुणो० १० आप संगति नो खप छे अमोने, तेहथीज विनति करीए तमोने; करो चौमास फरी.. सुणो० ११ माटे गुरूवर अत्र विराजो, देशनामृत थी अमने निवाजो; दयालु दया करी...सुणो० १२ रवजी सेठ आदि सहु संघे, विनति करे छे अतिहि उमंगे; नयणे नेह धरी. सुणो० १३ ओगणी अठ्ठाणुं ज्ञानपंचमीए, गुरूवर नमी दुःखदवे उपशमीए; श्रेय विचार करी. • सुणो० १४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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