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परम निधान-ज्ञान एक ताने, परम प्रसाद मुख मटके; क्षमा विनय ऋजुतादिक प्रगट्या, गस्युक्रोध-तन एक बटके"अहो०२ परम-विनय दोरे मन निज मां, ज्या अहंता गाडी अटके; देह भिन्न निज आत्म लखी ने, मान मरोड्यु एक झटके ''अहो०३ मणि बजाने काच किम्मत शी ? प्रकाश त्यां केम तिमिर टके; सरल सत्य ने झुठ विवेके, माया माथु धड़ लटके "अहो० ४ टली ममता त्यां परिगह-गहनी, लब्धि सिद्धि थी पणव टके; ज्ञान कोष ना सम्यक् तोषे, लोभ लणी चूरण फटके 'अहो०५ अनंत बल समूह व्यूह थी, घात्या घनघाती कटके; सर्वतंत्र स्वतंत्र थइ अन, सहजानंदधन सुव गटके .."अहो० ६
(१२३) ज्ञान-चेतना मस्ती
(राग मालकोश) २०-६-५४ [चाल-अवसर, वेर वेर नहिं आवे] भयो मेरो मनुओं बेपरवाह, अहं-ममता को बेड़ी फेड़ो, सजधज आत्म उत्साह भयौ० अंतर-जप विकल्प संहारी, मार भगाई चाह भयौ० कर्म-कर्मफल चेतमता को, दीन्हो अग्नि-दाह.. भयौ० पारतंत्र्य पर-निज को मिटायौ, आप स्वतंत्र सनाह भयौ० निज कुलवट की रीति निभाई, पत राखी वाह वाह भयौ० तीन लोक में आण फेलाई, आप शाहन को शाह भयौ० ज्ञान च तना संग में विलस, सहजानंद अथाह भयौ०
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