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(१०७) मनो-निग्रह पद
चाल-पंथिडा ! प्रभु भजिले दिन चार... कण्ट्रोलर ! कर निज मन कण्ट्रोल कर...(२) . अन्न धन तन कण्ट्रोल तो ए वण, तुस खंडन डामाडोल • कं० जेम मच्छ ध्यान हेतु बग-संयम, विषय हेतु रंग रोल.. शोभे पर उपदेशे एवो, वागे फूटो रोल.. क. स्वांग सजी केम करे नफटाइ, पेट भराई लोल • कं० झेर पी ने शु अमर थशे तु, चेत ! चेत !! रे टोल.. कं० आत्मा छ हुं साच कहुं छ, नहिं तो खुलशे पोल.. कं० था होशियार ! झट मन वश करीले, सहजानन्द अमोल.. कं० ता० २५-३-५४ से पूर्व
(१०८) अध्यात्म शिल्पी सम्बोधन ओ शिल्पी ! आत्म कला विकसावो, लेवा असली सुख नो ल्हावो... देह भाव तजी आत्म स्वभाव सजी, सुप्त चेतन ने जगावो... बाह्य चेतना अंतरंग लावी, आतम भावना भावो.. ओ० १ तन-मन-वचन-विकल्प कर्ममल, ए जड़ संग हटावो... प्रज्ञा छीणी विवेक हथोड़े, चैतन्य मूर्लि घडावो.. ओ०२ आत्म प्रदेशे प्रभु छबि चितरी, चित्त प्रभु छबि मां जमावो... परमगुरु सहजात्म स्वरूपे, प्रभु सम निज ने ध्यावो.. ओ०३ प्रभु पद निज सम सत्ता सही, भेद अभेदे शमावो... सहजानंदघन निजघन स्वामी, आत्म स्वराज्य ज पावो.. ओ०४
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