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(१६) स्व पर विवेक अन्तर्मुखी लक्ष्य सिवाना, भादवा सुदि ५/२००५
जणाय ने देखाय जे, तेमां लक्ष न आप, जाणनार जोनार मां, चेतन ! था थिर थाप १ जागाय ने देखाय जे, ते तो पर जड़ रूप, जाणनार जोनार तु, सहजानन्दघन भूप २ देव गुरु धर्म तुरंतु, ध्याता ध्येय में ध्यान, देह देवल थी भिन्न छे, जेम खडग ने म्यान ३ पर जड़ लक्ष अभ्यास थी, जन्म मरण दुख थाय, आप आपना ध्यान थी, जन्म मरण दुख जाय ४ माटे तज पर लक्ष नें, कर निज लक्ष अभ्यास, प्राण वाणी रस मां भली, सहजानन्द विलास ५
(१००) भाव लग्न' पद
सिवाना १-१०-४६
चालतु तो राम सुमर जग लड़वा दे०
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हूँ तो अमर बनी सत्संग करो.. हूँ तो
स्वामी श्री चैतन्य प्रभु था, लग्न कर्यु मैं बात खरी;
शुं गुण ग्राम करू एना हूं, शक्ति नहीं मुझ मांहि जरी । हूँ तो० १ जन्म मरण रोगो नहिं जेने, इच्छादिक नहीं दोष सरी तन धन परिजन शत्रु मित्रता, नष्ट थया कामादि अरि । हूँ तो० २
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१. कुमारी सरला व मधु निमित्ते बनेलुं
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