________________
(८२) मनोजय मंत्र पद
ढाल-वंदना वंदना चंदना रे मुझ मा मुझ मा मुझ मा रे, परभावे चेतन जी मँझ मा । आप स्वभाव घर सौख्य भर्यु छे, ज्ञान आनंद अनुपमा रे ।पर०।। देह खजन धन राग संबन्धे, शाने पड़े भव कूप मां रे ।पर० ॥१॥ इष्ट संयोग ए तो पुण्य तणुफल, ते तो अनित्य स्वरूप मां रेपर एकान्त दुखमय तेम छतां तूं, शाने राचे जड़ धूप मां रे ॥२॥ अनिष्ट संगफल पाप तणुए, होंसे कर्यु छे तें जमा रे॥पर०॥ जेवुवावे ते लणे तेवु फल, धरे पछी सुअणगमा रे ।।पर०॥३॥ इष्ट अनिष्ट मां धर तुसमता उर, विकल्प जाल सवी शमारे।पर। मंत्र मनोजय अजपा अंगीकर,जो सत्सौख्य तणी तमारे ॥पर०॥४॥ मन स्थिरताए प्रगटे सहजानंद, बाजी हवे तुचक मां रे ।पर०॥ अचिंत्य नरभव पामी हवे निज, आत्मसेवा ने मूक मा रे ।पर०॥५॥
(८३) मल-विक्षेप-अज्ञान
[सोइ सोई सारी रैन गँवाई. ए चाल] मल विक्षेप अज्ञान त्रणे ए, आत्म साधन मां प्रतिबंधक छ । म० क्षमा विनय निज दोष-अरक्षा, अल्पारंभ-स्वल्प-परिगह जे। मल०१ तेह अनंतानुबंधक-भाव-मल. प्रक्षालन-जल चगुण-गृह छे । मल०२ सद गुरु-आज्ञा-भक्ति परा ते, मल-विक्षेप-शमन औषध छ । मल०३ पर-व्यवसायी-ज्ञान अज्ञान ते, नाशे सद्गुरु बोधे कबंधए । मल०४ सह परमार्थ-साधन मां दुर्लभ, परम साधन प्रत्यक्ष-सत्संग छे । मल०५ संत-वियोगे संत-दशानु, अवलंबन सहजानंद अभंग रे मल० ६
१११
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org