________________
-जिसे हमने जैसलमेर ज्ञान-भण्डार से लाकर प्रकाशित किया था-आपको बड़ा प्रिय था। उससे आपके विचारों को बड़ा बल मिला, उस ग्रन्थ का अनुवाद भी आपने करवाया था ।
गुरुदेव अपने सम्बन्ध में किसी को कुछ लिखने नहीं देते थे, माताजी को भी मनाई थी। सं० २०२२ के पूर्यषणों में मैंने माता जी की आज्ञा प्राप्त कर कुछ पद्य रचनाएं की जिन्हें तत्काल 'सहजानन्द-संकीर्तन' नाम से प्रकाशित कर दीं। उनके महाप्रयाण के पश्चात् श्री प्रतापकुमार टोलिया ने अंग्रेजी “जैन जर्नल" में, अगरचंदजी नाहटा ने जैन-जगत् में, कुमारी चंदना बहिन ने जोधपुर के पार्श्वनाथ मन्दिर की स्मारिका में व मैंने मणिधारी श्री जिनचंद्रसूरि अष्टमशताब्दी स्मृति-ग्रन्थ में प्रकाशित "खरतर गच्छ की क्रान्तिकारी और अध्यात्मिक परम्परा” लेख में उनका कुछ परिचय प्रकाशित किया। अहमदाबाद के परमभक्त साक्षरवर्य श्री लालभाई सोमचन्द शाह ने “सहजानन्द-विलास” नाम से वृहद् गन्थ लिखा है जिसमें गुरुदेव के प्रवचन, पत्र, संस्मरण और वाणी का विशद संग्रह है। इसकी पाण्डुलिपि ता० २५-३-७१ को लिखी हुई अबतक अप्रकाशित है।
प्रस्तुत 'सहजानंद-सुधा' का प्रथम भाग परमपूज्या प्रातः स्मरणीया माताजी की आज्ञा से श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, हम्पी द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। आश्रम के मंत्री श्री घेवर चंद जैन एं गुरुदेव की वाणी के रसिक श्री विजयकुमारसिंह जी बडेर, श्री सुन्दरलालजी पारसान, श्री केशरीचंदजी धूपिया,
२६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org