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________________ अशुभ करे नरकादि फल, कम मुक्त न कहांहि ।।८।। समाधान-सदगुरु उवाच : ज्योंहि शुभाशुभ-कर्म-पद, जाने सफल प्रमाण । त्यों तन्निवृत्ति सफलता, तातें मोक्ष सुजाण IICE|| बीत्यो काल अनन्त सो, कर्मासक्ति प्रभाव। वृत्ति-शुभाशुभ संवरत, उपजे मोक्ष स्वभाव ।।१०|| .. देहादिक संयोगका, आत्यंतिक हि वियोग। . . सिद्ध मोक्ष शाश्वत पदे, निज अनन्तः सुख भोग ।।६१॥ (६) शंका-शिष्य उवाच: यदपि मोक्ष-पद हो तदपि, नहिँ अविरोध उपाय । . . . कैसे काल अनन्तकी, जावे कर्म-बलाय ? ॥१२॥ अथवा मत दर्शन बहुत, कहें उपाय अनेक। तामें सत्-मत कौन है ? सूझत नाहिं विवेक ॥१३॥ मोक्ष होय किस जातिमें ? कौन भेषसों मोक्ष ? ताका निश्चय होत ना, बहुत भेद यह दोष ॥१४॥ तातें ऐसी मति भयी, मिले न मोक्षोपाय। मात्र अकेले ज्ञानसों, कैसे भव-दुःख जाय ? ॥६५॥ समाधान पूरण भयो, पाँच उत्तरसों प्राज्ञ । समझू मोक्ष-उपाय तब, उदय उदय सद्भाग्य ॥१६॥ · समाधान सदगुरू उवाच : पांच सदुत्तरकी भयी, आत्मामें सुप्रतीति । .. होगा मोक्षोपायका, समाधान उस रीति ॥णा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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