SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निजवंदनसों ना मरे, रिपु मानादि महान । सदगुरु चरण सुशरणसों, अल्प प्रयास प्रयाण || १८ || जा सदगुरु उपदेशतें, पायो केवलज्ञान । गुरु यद्यपि छद्यस्थ हों, विनय करें ऐसो मारग विनयको, कह्यो जिनेन्द्र この भगवान ॥ १६ ॥ अराग । मूलमार्गक सुभाग्य ||२०|| मर्मको, समझे कोइ असद्गुरु इस विनयको, लाभ लहे जो बिन्दु | महामोहनीय कर्मसों, चल्यो जाय भव- सिन्धु ॥२१॥ होय मुमुक्षु जीव सो, याहि समझ अपनात । होय मतार्थी जीव सो, उलट वाट बहि जात ॥२२॥ होय मतार्थी तो उसे, होत न आतम-लक्ष | लक्षण उसी मतार्थीके, कहूं अत्र निपेक्ष ||२३|| मतार्थी लक्षण : बाह्य-त्याग बहिरातमा, तामें सद्गुरु अथवा निजकुलधर्मके, गुरुमें ममत जो जिन देह प्रमाण अरु, समोसरणादि जिन स्वरूप माने यही, बहलावे निज प्रत्यक्ष सद्गुरु योगमें, वर्त्ते दृष्टि असद्गुरुको दृढ़ करे, निज देवादिक गति भंगमें, जो समझे श्रुतज्ञान । माने निजमत- भेषको आग्रह मुक्ति निदान ||२७|| Jain Educationa International भाव ! प्रभाव ||२४|| सिद्धि । For Personal and Private Use Only बुद्धि ॥२५॥ विरुद्ध । मानार्थे भुग्ध ||२६|| www.jainelibrary.org
SR No.003818
Book TitleSahajanand Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandana Karani, Bhanvarlal Nahta
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy