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गुरुदेव की प्राथमिक रचनाएँ, जब वे साधु-समुदाय के साथ विचरते थे, तब सं० २००० में 'भद्र पुष्पमाला' नाम से व सं० २००३ में गुजराती 'पंच प्रतिक्रमण सूत्र' में पर्यूषणादि के स्तवन एवं दादासाहब का मंत्र - गर्भित प्राकृत स्तोत्र पूज्य गणिवर्य श्रीबुद्धिमुनिजी महाराज ने प्रकाशित करवाये थे । श्री जिनरत्नसूरि जी की जीवनी 'रत्नप्रभा' ' एवं उपाध्याय श्री लब्धिमुनिजी की जीवनी में भी आपकी कुछ कृतियां छपी हैं। चैत्यवन्दन चौवीसी तथा कुछ फुटकर पदादि कई पुस्तकों में प्रकाशित हुए थे । हमने कुछ पद 'जैनभारती' मासिक में एवं आत्मसिद्धि शास्त्र के गुरुदेव कृत हिन्दी पद्यानुवाद के साथ कुछ पद सं० २०१४ में प्रकाशित किए। श्री केशरीचंदजी धूपिया ने कुछ पद, चैत्यवंदन 'आत्म जागृति' में एवं नियमसार - रहस्य को नवपदं तप आराधन विधि में प्रकाशित किए हैं ।
सं० २०१० में जब पूज्य गुरुदेव पावापुरी में चातुर्मास स्थित थे तब कुमारी सरला (जिसका पावापुरी में समाधिमरण हुआ) के लिए समाधि - शतक की रचना की थी । मैंने गुरुदेव की आज्ञा से 'जैन भारती' में प्रकाशित करवाया था । इस संग्रह में पूज्य गुरुदेव के निर्देशानुसार उसका नाम 'समाधिमाला' रखा गया है ।
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मैंने इस ग्रंथ की प्रेस कापी दो वर्ष पूर्व तैयार कर ली थी, फिर माताजी ने कुमारीचंदना द्वारा गुजराती में की हुई प्रेस कापी भेज पर मेरी प्रेस कापी में सारी कृतियाँ थी ही अतः उसे ही प्रेस दे दिया । इसके प्रकाशन क्रम में पहिले चैत्यवन्दन, स्तुति,
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