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________________ बुद्धिसागरसूरि, श्री मोतीचंद गिरधर कापडिया आदि ने सांगोपांग गुजराती एवं हिन्दी में विवेचन भी लिखे। विस्तृत प्रस्तावनायें भी लिखीं। इन सब विवेचनों का अवलोकन कर इस युग के परम योगी श्री सहजानन्दजी ने भी इन स्तवनों पर एक स्वतंत्र विवेचन लिखा था। सहजानन्दजी भी मूलतः भद्रमुनिजी के नाम से खरतरगच्छ परंपरा के एक श्रमण थे। आत्मलक्षी बन जाने पर ये भी परम्परा से मुक्त होकर सहजानन्दघन बने थे। साधना की अवस्था में इन्होंने इन स्तवनों पर अनुभूति-परक चिन्तन किया और आत्मानुभूति से उन्होंने इसपर विवेचन लिखा। दुर्भाग्य था कि यह चिन्तन-परक विवेचन पूर्ण नहीं कर पाये । सत्रह स्तवनों तक ही वे विवेचन लिख सके। चिन्तन-पूर्वक लिखा गया यह विवेचन अपना एक वैशिष्टय पूर्ण स्थान रखता है । इसी विशिष्टता को ध्यान में रख कर प्राकृत-भारती अकादमी और श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, हम्पी के संयुक्त प्रकाशन के रूप में यह प्रकाशित किया जा रहा है। "गच्छना भेद बह नयण नीहालतां, तत्त्व की बात करतां न लाजे।" जैसी पंक्तियों का जब रसास्वादन करते हैं तो वहां आत्म-द्रष्टा बनने की ओर ही प्रवृत्ति जागृत होती है। आत्माभिमुखी बनते ही यह व्यावहारिक संसार, गच्छ, परम्परा से साधक दूर होता जाता है और तत्त्वचिन्तक बनकर रत्नत्रयो को आधार मानकर आत्म साधना की और प्रयाण करता है। पाठक भी इस स्तवनों का एवं अनुभूति-परक विवेचन का तन्मयता से अध्ययन कर आत्मतत्व को पहचानने का प्रयत्न कर यही इस प्रकाशन का उद्दश्य है। - जैन एवं राजस्थानी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् तथा भाषा लिपि के विशेषज्ञ श्री भंवरलालजी नाहटा ने न केवल इस पुस्तक का संपादन कर अपितु विस्तृत प्रस्तावना लिखकर अनुगृहीत किया है अतः हम उनके आभारी हैं। एस० पी० घेवरचंद जैन म० विनयसागर देवेन्द्रराज मेहता __ मेनेजिंग ट्रस्टी निदेशक श्रीमद्रराजचन्द्र आश्रम प्राकृत भारतीय अकादमी प्राकृत भारती अकादमी जयपुर . जयपुर सचिव हम्पी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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