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श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ( राग-काफी-आघा आम पधारो पूज्य, ए देशी )
मुनिसुव्रत जिनराज एक मुझ विनती निसुणो ॥ टेक ॥
आतम तत क्यूं जाणू जगतगुरु, एह विचार मुझ कहिये। आतम तत जाण्या विण निरमल, चित समाधि नवि लहिये ॥ मु० ॥१॥
कोई अबंध आतम तत मान, किरिया करतो दीस। क्रिया तणो फल कोण भोगवै, इम पूछयां चित रीसे ॥ मु० ॥२॥
जड़ चेतन ए आतम एकज, थावर जंगम सरिखो। सुख दुख संकर दुध ण आवै, चित विचार जो परिखो।मु० ॥३॥
एक कहै नित्यज आतम तत, आतम दरसण लीनो। कृत विनास अकृतागम दूषण, नवि देखै मति होनो ॥ मु० ॥४॥
सुगत मत रागी कहै वादी, क्षणिक ए आतम जाणो। बंध मोख सुख दुख नवि घटै, एह विचार मन जागो ॥ मु० ॥५॥
भूत चतुष्क वरजी, आतम तत, सत्ता अलगी न घटै। अन्ध सकट जो नजर न देखे, तो स्यू कीजै सकट ॥ मु० ॥६॥
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