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vii अक्षरार्थ मांहि कोई रहस्यार्थ नथो भासतुं फिरी गाथा ना उतर दल मां विरोधाभास छै पूर्व दल मां तो पर पक्ष संबंधी अर्थ लिख्यु, उत्तर दल कृपा करी ने तुम्हारा चरणं तले हाथ ग्रही ने मुझने राखज्यो ए स्व पक्ष स्युं" ( श्री अरनाथ स्त० बाला० )
__ अर्थ कारके पांचमी गाथा ने बीजे पदे पामर करसाली पामर करसाओनी अलि पंक्ति ते बे पदोनो एक पद करो ने मूंछ एकज अर्थ कयु फिरी दशमी गाथा ने अंते त्रोजे पदे दोष निरूपण तिहां एक वार तो दोष नु निरूपण कहिवू ए अर्थ कयु फिरी वा लिखी ने दोष नु निरूपण निदूषण थया एहवु अर्थ करी दीधु फिरी आठवीं गाथा ने त्रीजे पदे जग विघन निवारक पद न जगत ने विघनकारी ते निवारी ने एहवु अर्थ करी दीधु तेनु अब मारी बुद्धि प्रमाणे लिख्यु ते जोज्यो आनंदघन नु आशय आनंदघन साथे गयु (श्री मल्लि जिन स्त० बा०)
"अर्थकर्तायें जड़ चेतन ए आतम एकज' ए त्रीजी गाथा नु अर्थ विरुद्ध परं विरुद्ध पण न कहाय एक ज गाथा मां त्रण ठिकाणे निरपेक्षक वचन लिखी गयुप्रथम जड़ चेतनेति XXX ए पर लिखवानु स्यु कार्य ए एक स्थानके लिख्यु परं अन्य स्थानके लिख्यु तेहनु केतलु क लिखू परं मोटा” ( मुनिसुव्रत जिन स्तवन बाला० )
___ अर्थकर्तायें जे जे स्थानके जे जे विरुद्ध लिख्यु ते ते मारै लघु मुखै मोटाओना अर्थ नो अपमान केटलोक लिखु पर अर्थकारके अर्थकरत अल्प ही विचायु" नहीं। अर्थकार मां विचारणा अल्प जणाय छै यथा-सिद्ध चक्राय श्रीपाल राजा-सूत्रकायें तो आतम सत्ता विवरण करता इम गूथ्यो ने अर्थकारके अर्थ करतां लिख्यु आत्मा नी सत्ता ने कर्त्ता नो विवरण आत्मा मा तिष्टमान छै ए स्यूं लिख्यू इणै तो आत्म सत्ता ने विवरण करता एहवु रहस्य का तेथी सांख्य योग वेई आत्म सत्ता ना विवरण कारक कह्या फिरी एहथी आगल पदमां "लहौ दुग अंग" तेनु अर्थकारकै लहो नो लघु सामान्य अर्थ कर्या सूत्रकार नो
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