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दान देते हैं, और कथंचित-वक्ता नहीं—मौनी हैं, क्योंकि वे भाषावर्गणा के ग्रहण-त्याग-रूप प्रयोग के कर्ता नहीं हैं ; इतने पर भी बोलने न-बोलने की इच्छा मात्र से मुक्त उदासीन होने से वे वक्ता हैं या मौनी ? इसे समग्र रूप में एक ही शब्द द्वारा व्यक्त किया नहीं जा सकता, अतः वे कथंचित् अवक्तव्य हैं । ___ इस प्रकार उदासीनता के संयोग से उपयोगी-अनुपयोगी, योगीभोगी, शक्ति-व्यक्ति, त्रिभुवन प्रभुता-निर्ग्रन्थता और वक्ता-मौनी -ये पाँचों ही त्रिभंगियाँ अविरोध-रूप में सिद्ध हो चुकीं।
(६) इसी प्रकार के अन्य और भी परस्पर विरोध दिखलाने वाले द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी आदि अनेक भंगो का पारस्परिक विरोध मिटाने वाला चमत्कार दिखा कर यह त्रिभंगो-न्याय चित्त को आश्चर्यचकित और आनन्द-विभोर कर देता है एवं सर्वांगीण वास्तविक तत्त्व-समाधान के द्वारा सभी कल्पना-चित्रों से विचित्र-निर्विकल्प बनाकर आत्मा को पुष्ट ज्ञानानन्द युक्त सिद्ध-पद प्रदान करके सभी न्यायों में प्रधान-पद ले लेता है।
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