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________________ कुछ देना नहीं है और जड़-सृष्टि से कुछ लेना नहीं है। इसीलिए उनके परिणामों में त्याग ग्रहण रहित केवल उदासीनता ही चमक रही है। इस दृष्टि से भगवान में करूणा है या नहीं है ? जिसे समग्र रूप में एक शब्द द्वारा नहीं कहा जा सकता अतः वह (३) कथंचित अवक्तव्य है। ४. भगवान में उपर्युक्त करूणा और क्रूरता ये दोनों ही केवल स्वाभाविक गुण हैं, दोष नहीं। क्योंकि उनकी करूणा के फल-स्वरूप स्व-पर को अभयदान मिलता है और क्रूरता के फल-स्वरूप स्व-पर के आत्मैश्वर्य में बाधक धाती-कर्म-मल दूर हो जाता है। ऐसा होने पर भी इन दोनों क्रियाओं में कतृत्व-बुद्धि पूर्वक प्रेरणा न होने से भगवान की उदासीनता अभंग ही बनी रहती है। इस प्रकार गहराई से देखने पर वीतराग भगवान में करूणा, करता और उदासीनता तीनों ही धर्म एक साथ रहने पर भी प्रत्येक धर्म का किसी दूसरे के साथ विरोध सिद्ध नहीं होता-ऐसा आप अपने मन में निश्चित-रूप से समझिये। ५. इसी तरह आपने भगवान के जितने विशेषण कहे, वे सभी उनको सयोगी कैवल्य-दशा में घटित होते हैं; और उन सभी पर यह त्रिभंगी-न्याय भी घटित हो सकता है। जैसे कि : (१) ज्ञानावरण और दर्शनावरण से सर्वथा मुक्त, सम्पूर्ण, शुद्ध और अखण्ड ज्ञान-दर्शन भगवान में प्रकट है ; अतः उत्पाद, व्यय और धूवता रूप त्रिविध विकालिक वर्तना युक्त विश्व के समस्त पदार्थों को वे प्रति समय साक्षात् देख-जान सकते हैं, पर उस प्रकार देखने-जानने में उनकी सर्वज्ञता के कारण कथंचित् उपयोग है और कैवल्यता-आत्मज्ञता के कारण कथंचित् उपयोग नहीं है। इतने पर भी चेतना तरंग के प्रयोग-कत्तृत्व से सर्वथा उदासीन होने के कारण वे उस प्रकार उपयोगी हैं या अनुपयोगी ? जिसे समग्र-रूप में एक शब्द द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता, अतः वे कथंचित-अवक्तव्य हैं। [५७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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