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खरतर-गच्छ दीक्षा नन्दी सूची श्री जिनचन्द्रसूरिजी का स्वर्गवास सं० १६७० बिलाड़ा-बेनातट में हुआ था। मिती अश्विन वदि २ “दादा दूज" नाम से गुजरात आदि में सर्वत्र प्रसिद्ध है। विशेष जानने के लिए हमारी युगप्रधान जिनचंद्रसूरि पुस्तक देखना चाहिए। जिनसिंहसूरि
इनका जन्म खेतासर निवासी चोपड़ा चांपसी-चांपलदे के यहां मार्गशीर्ष सुदि १५ को हुआ था। इनका जन्म नाम मानसिंह प्रसिद्धि में रहा।सं० १६२३ बीकानेर में श्री जिनचंद्रसूरि जी से आपने भागवती दीक्षा स्वीकार की। नाम महिमराज रखा गया। दसवीं नंदि में इन्हें तथा समयराज को दीक्षित किया था। हवी हेम नंदि थी जिसमें श्री पद्महेम दीक्षित थे, जो ३७ वर्ष संयम पाल कर सं. १६६१ बालसीसर में स्वर्गवासी हुए। कमल नंदि नं. ६ थी जिसमें तिलककमल दीक्षित थे और नंदि नं० ७ कुशल नंदि थी जिसमें कनकसोम के शिष्य रंगकुशल और यशकुशल दीक्षित थे। इस प्रकार शोध करने से दीक्षा पर्याय का पता लग सकता है। कनकसोम के शिष्य लक्ष्मीप्रभ और कनकप्रभ की प्रभ नंदि ३३ नंबर में है। साधसुन्दरोपाध्याय शिष्य विमलकीति की नंदि ४० वीं है जो सं० १६५४ में दीक्षित हए थे।
श्री महिमराज जी को सं० १६४० माघ सुदि ५ को जैसलमेर में बाचक पद और सं० १६४६ फा० शु० २ को लाहोर में आचार्य पद प्राप्त हुआ था। इनके शिष्य १ हेममंदिर, २ हीरनंदन, ३ राजसमुद्र, ४ पद्मकीर्ति, ५ सिद्धसेन, ६ जीवरंग आदि जिनकी दीक्षा श्री जिनचन्द्रसरि जी के करकमलों से हुई थी। उनका स्वर्गवास सं० १६७० में होने पर आप युगप्रधान हुए और जो दीक्षाएं दीं, वे जिनसिंह सूरि नाम होने से 'सिंह' नंदि में दीं। दीपावली के दिन १ कनकसिंह, २ मतिसिंह, ३ महिमासिंह, ४ मानसिंह को दीक्षित कर इन्हें शिवनिधान जी के शिष्य बनाये । राजसिंह विमलविनय के शिष्य थे जिनकी विद्याविलासरास सं० १६७६ चंपावती में तथा आराम शोभा चौपाई सं० १६८७ में रचित उपलब्ध है।
श्री जिनसिंहसूरि सं० १६७४ में बीकानेर थे तब जहांगीर बादशाह ने मुकरबखान नवाब से फरमान पत्र लिखाकर बुलाया। आप विहार कर पधारे, पर मेड़ता से आगे जाने पर अस्वस्थ हो जाने से वापस मेड़ता पधारे
और पोष सुदि १३ के दिन आप स्वर्गवासी हो गए। जिनराजसरि (द्वितीय)
आप बोहित्थरा गोत्रीय धर्मसी-धारलदे के पुत्र थे। सं० १६४७ वैशाख सुदि ७ को आपका जन्म हुआ था। अपने ७ भाइयों में ये तीसरे खेत
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