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प्रकाशकीय
प्राकृत भारती के पुष्प ६७ को प्राकृत भारती अकादमी और श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर, कलकत्ता के संयुक्त प्रकाशन के रूप में "खरतर-गच्छ दीक्षा नन्दी सूची' पुस्तक प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है।
यह पुस्तक वस्तुत: महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है। इसके आधार पर खरतरगच्छ के तत् तत्कालीन मुनियों/यतियों, साहित्यकारों का समय निर्धारण सहजभाव से किया जा सकता है। न केवल काल निर्धारण ही अपितु उनका जन्म नाम, दीक्षा नाम, गुरु का नाम, दीक्षा संवत, दीक्षा प्रदाता का नाम और किस शाखा या उपशाखा में हए हैं आदि का निर्णय भी स्वतः हो जाता है। जैसे क्षमाकल्याणोपाध्याय के सम्बन्ध में हमें जानकारी प्राप्त करनी हो तो देखिये पृष्ठ ५८ :
__इनका जन्म नाम खुस्यालो था, इनका दीक्षा नाम क्षमाकल्याण रखा गया। इनके गुरु का नाम पं० अमृतधर्म मुनि था और वे जिन भक्तिसूरि की शाखा में हुए तथा इनको सं० १८१५ आषाढ़ वदि २ को जैसलमेर में श्री जिनलाभसूरि ने दीक्षा प्रदान की, जानकारी उपलब्ध हो जाती है।
वस्तुतः यह सूची भी अपूर्ण है। जो दी गई है वह भी सं० १७०७ से तथा खरतर-गच्छ की मात्र दो शाखाओं का ही प्रतिनिधित्व करती है । सम्पादकों के निरन्तर शोध और अथक प्रयास करने पर भी खरतरगच्छ के प्रारंभ से लेकर १७०६ तक और इसी गच्छ की अन्य १० शाखाओं की भी नन्दी सूची उपलब्ध न हो सकी। साथ ही इसी प्रकार जैन श्वेतांबर परंपरा के अन्य गच्छों की भी दीक्षा नन्दी सूचियां प्राप्त न हो सकी। अतः जो प्राप्त है, उसी को विज्ञों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
___ इस सूची से एक तथ्य और स्पष्ट होता है कि एक-एक आचार्य ने अपने कार्यकाल में कितनी दीक्षायें प्रदान की। उदाहरण के तौर पर जिनचन्द्रसूरि का देखिये । इनका आचार्य काल १७११ से १७६२ है । इस काल में उन्होंने ३६ नन्दियां स्थापित की और ६१६ व्यक्तियों को दीक्षा
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