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खरतर गच्छ दीक्षा नन्दी सूची
पं. खूबौ क्षेमपुरन्दर पं० हीरतिलक मुनेः शिष्य, क्षेमशा० पं. खेतसी क्षांतिपुरन्दर पं० क्षमाधीर मुनेः शिष्य, क्षेमशा० पं. वीरचंद। विवेकपुरन्दर पं० रंगविलास मुनेः शिष्य, जिनभद्र शा० पं. जयचन्द युक्तिपुरन्दर पं० रंगविलास मुनेः शिष्य, जिनभद्रशा० पं. रूपौ ऋद्धिपुरन्दर पं० प्रीतिमन्दिर मुनेः शि०, जिनभद्रशा० पं. वछीयो सुमतिपुरन्दर पं० सुमतिभक्ति मुनेः पौत्र, जिनभद्रशा० पं. पदमचन्द पुण्यपुरन्दर जिनभद्रसूरि शाखायां उदयपुर पं. सीताराम सत्यपुरन्दर जिनभद्रसूरिशा० ॥सं० १८९३ वर्षे शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ बदि ६ चन्द्रवारे शतभिषा नक्षत्रे विजय मुहूर्ते श्री पालीताणा महानगरे श्री सिद्धगिरि शाश्वत तीर्थे जंगम युग प्रधान भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः द्वितीया 'उदय' नन्दि कृता २॥ संघ मध्ये ॥ पं. अमरौ अमरोदय ५० क्षमाविलास मुनेः शिष्य, जिनभद्रशा० पं. माणको माणिक्योदय उ० भीमभद्र गणः शिष्य, जिनरत्नशा०
१. जूनागढे २. कोटै रा ३. सं० १८९९ वर्षे आ. सु. ५ कुजवारे भ० श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी उदयपुर
नगरे, तत्र पाली वास्तव्य चन्द्र गच्छीय पं० ताराचन्दजी तत्शिष्य पं० पदमचन्द ने श्री जी उपदेशात् खरतर भट्टारक गच्छ माहे आयो, आगे सं समाचारी आज्ञा आदेश श्री जिन महेन्द्रसूरिजी रो प्रमाण करसी । इणरी
शाखा श्री जिनभद्रसूरि में स्थापन कीयो॥ ४. ॥सं० १८९९ रा ज्येष्ठ सुदि १ दिने श्री धुलेवा नगरे श्री केशरियानाथजी
अग्रे जं० यु० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी पार्श्वे माधोपुर वास्तव्य पचांण आचार्य गच्छे पं० सीताराम पं० गेनचन्द अमरचन्द सिरी किसनादि श्रीजी उपदेशात् सपरिवार सहितेन वृहत्खरतर गच्छ माहे आया। बड़ी दीक्षा लीनी । वासक्षेप श्रीजी कनै लीनौ । आगे सुवृहत्खरतर गच्छ रा साधु छ। श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी री आज्ञा प्रमाण करसी, हुकम राखसी । इणां री साखा जिनभद्रसूरि छै। सही, ॥ दसकत पं० सीताराम ज्ञानचन्द का छै, ऊपर लिख्यौ सो सही छै॥
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