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________________ महोपाध्याय समयमुन्दर ( ३ ) कवि की शिष्य परंपरा में अनेकों उद्भट विद्वान मौलिक साहित्य-सर्णन कर सरस्वती के भण्डार को समृद्ध करने वाले हुये हैं जिनमें से कुछ विद्वानों का संक्षिप्त उल्लेख कर देना यहाँ अप्रासंगिक न होगा। ___ १. वादी हर्धनन्दन-कवि के प्रधान शिष्यों में से है । वादीजी गीतार्थ और उद्भट विद्वानों में से हैं । कवि स्वयं इनके सम्बन्ध में बल्लेख करता है: "प्रक्रिया-हेममाष्यादि-पाठकैश्च विशोधिता। हर्णनन्दनवादीन्द्र, चिन्तामणिविशारदः॥१२॥" कल्पलता प्रशस्तिः "सुशिष्यो वाचनाचार्यस्तर्कव्याकरणादिवित् । हर्णनन्दनवादीन्द्रो, मम साहाय्यदायकः ।" [समाचारी शतक प्रशस्तिः] इसी प्रकार की योग्यता का अङ्कन कवि ने कतिपय पद्यों द्वारा 'गुरुःखित वचनम् में भी किया है । वादी ने कवि कृत कल्पलता, समाचारी शतक, सप्तस्मरण टीका, एवं द्रौपदी चतुष्पदी के संशोधन एक रचना में सहायता दी थी। कवि ने हर्णनन्दन के लिये ही 'मंगलवाद' की रचना की थी। ___ वादी प्रणीत निम्नलिखित ग्रन्थ प्राप्त है: मान में पो० सेवली. (निजामस्टेट ) में विद्यमान हैं। और " यतिबर्य उ० श्री नेमिचन्द्रजी (बाड़मेर ) के कथनानुसार ". .. समयसुन्दरजी की शाखा में अखेचन्दजी, हीराचन्दजी झाल में थे और माणकजी, बच्छराजजी, सुगनजी, भवानीदास, रूपजी, अमरचन्दजी, हेमराजजी, दौलतजी आदि कईयों को हममे देखा है। किन्तु ये किनकी शाखा में थे, ज्ञात नहीं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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