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________________ क्षुल्लक ऋषि रास (५६७ ) साधवी माता कहइ सांभलि, मुंडा ए काम भोग रे। आलिंगन लोह पूतली सु, परमाहम्मी प्रयोग रे।।। भ.। कुण जाणइ आगल किस्य छइ, प्रत्यक्ष मीठउप्रेम रे। गरुणी कीर्तिमती छइ माहरइ, ते कहइतुं करि तेम रे ।१०। भ.। सीख घउ मुझशील न पलइ, मुझ तुमे मात समान रे। बार वरस रह्यो मां नइ आग्रहइ, बार वरस मुझ मान रे।११। भ.। तुल्लक मांहि दाक्षिण्य भलउ, ते पणि मानी बात रे । बार बरस जिम तिम रह्यो,पणि धुरिली न गई धातरे।१२। भ.। गुरुणी कहइ गुर पासि जा तुं, जिणि तुनइ दीधी दीख रे। गच्छनायक पासि जइ कहइ, सामी यउ मुझ सीख रे ।१३। म.। गच्छनायक प्रतियोधि दीघउ, पणि लागउ नहीं कोई रे। करम विवरउन धइ त्यां सीम, जीव नउजोर न होइ रे।१४। भ.। आचारिज कहइ गच्छ अम्हारउ, उपाध्याय नइ हाथि रे। एकला अम्हे कांइ न करूं, सहु उपाध्याय साथि रे ।१५। म.। मन विना पणि ववन मानी, पहुँतउ उपाध्याय पासि रे। उपाध्याय कहइ परखि इणि परि,वलि सउतिम पंचास रे।१६।भ.। बार बरस लगि रह्यउ अबोलउ, दाखिण गण निसदीस रे। ऊचल चित्त चित्त रह्यउ इसी परि, वरस अठतालीस रे।१७। भ.। आपणी माता पासि आन्यउ, बोलइ बेकर जोडि रे। श्रा ओघउ हुं रहि न सकु, जाउं छुव्रत छोडिरे ।१८। म.। मोहनी वसि कहइ माता, संपति विणुनहीं सुख रे। पीतरिया पासि जा त पाधरउ, देखिस नहीं तरि दुःख रे।१६। मः। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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