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________________ ( ५६२ ) समयसुन्दरकृति कुपुमाञ्जलि इहां वलि बोजड दृष्टांत दाखव्यउ, भारवाहक नउ विचारो जी । भारवाहर ताउ कावडी भली, साज बिना नाकारो जी 1२६ के. | सूत्र वांची नइ सगलुं समझज्यो, तिहां विस्तर संबंधो जी । केशी प्रदेशी राजा तउ, समयसुंदर कहर प्रबन्धो जी । ३० के. । दाल तीजी - - राजिमतो राखी इस परि बोलइ, नेमि बिना कु घुंघट खोलs | ४ । प । ५ । प. । इत्यादिक प्रश्नोत्तर करतां, हेतु जुगति हिया मांहि धरतां । परदेशी राजा प्रतिबोध्यउ, केशी गुरु श्रावक कियो सूधउ । २ । प. । मिथ्यात नी मति दूर निवारी, साची सर्द हा मन धारी । ३ । प. । हिंसा दुर्गतिना दुख खाणी, जीव दया साची करि जोणी । जूदउ जीव नई जूदो काया, परलोकगामी जीव जणाया । जड्डु तणी बात जाणी जिवार, मई जाणुं तुमे ज्ञानि तिवारइ । ६ । प. । पण जाणत हुँ वांकउ बोल्यउ, हेतु जुगति करतां हिथ उ खोल्यउ |७| आपणउ सगलउ अपराध खामइ, केशी गुरु नइ निज शीस नामह । श्रावक ना बारह व्रत लीधा, जन्म जीवित सफला सहु कीधा । प० । उतपति समवसे गामनी कीधी, त्रिहुं वाटे वांटी नइ दीधी । १० प . । राज, अंतेउर, पुण्य नइ खाता, इस परिठी रहई दिन रातहूं । ११ । १ । रमणिक पणुं रूडो परि राख्णुं, भली परि मान्युं गुरु भाख्यं । १२ प. । श्रीजी ढाल थई ए पूरी, समयसुन्दर कहि बात अधूरी | १३ | प डाल ४ - राग धन्याश्री - पास जिन जुहारियइ, एहनी ढाल परदेशी श्रावक थयउ, बारह व्रत सुधा पालह रे । मूल अनइ उचर तणा, दूषण ते सगला टालह रे । १ । १ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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