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________________ ( ५२३६ ) समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि क्षमा करंता खरच न लागइ, भांगे कोड़ कलेस जी । अरिहंत देव आराधक थावर, व्यापइ सुयश प्रदेस जी । आ. । ३३ । नगर मांहि नागोर नगीनउ, जिहां जिनवर प्रासाद जी । श्रावक लोग वस अति सुखिया, धर्म तराइ परसाद जी । आ.॥ ३४ ॥ क्षमा छत्तीसी खांते कीधी, आत्मा पर उपगार जी | सांभलतां श्रावक पण समज्या, उपसम घरघउ अपार जी । आ. । ३५ । युगप्रधान जिणचंद सूरीश्वर, सकलचंद तसु सीस जी । समयसुंदर तसु शिष्य भइ इम, चतुर्विध संघ जगीशजी । श्रा. | ३६ | कर्म छभीसी करम थी को छूट नहीं प्राणी, कर्म सबल दुख खाण जो । कर्म तराइ वस जीव पड़चा सहु, कर्म करइ ते प्रमाण जी | क० | १ | तीर्थंकर चक्रवर्त्ति अतुल बल, वासुदेव बलदेव ते पण कर्म विटंब्या कहिये, जी । कर्म सबल नित मेव जी क० | २ | मुक्ति भणी उठ्या जे मुनिवर, तेह तथा कहुँ नाम जी । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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