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आहार ४७ दूषण सज्झाय
ए सोलह का उदगम दोष, गृहस्थ लमाड़इ रागि के रोस । पण सूझतउ विहरावर जोइ,
तेहनई लाभ अनंता होइ । ए० | १७ | हुलरावर राखइ वली
धात्री (१७) दोष काउ केवली | ए० | १८ | संदेसा कह कहर नागइ सम्म
भिक्षा ल्यइ ते दूती (१८) कर्म्म । ए० | १६ | जोतिष निमित्त प्रजु जइ नित्त,
यह आहार ते दोष निमित्त (१६) | ० | २० | जाति प्रकासी ल्यइ आहार,
जीव (२०) दूपण ते निरधार | ए० | २१ | दाता नउ श्रीतउ जे कोइ,
बाल
( ४८७ )
तसु प्रसंसवणी मग (२१) होइ । ए०|२२| वैद्य पशु करs पिण्ड निमित्त,
दोष विकिच्छा (२२) जाउ चित्त । ए० | २३ | क्रोध (२३) मान (२४) माया (२५) नइ लोभ (२६), करी पिण्ड ल्यड़ न रहइ सोभ | ० | २४| अन्नदाता नउ पहिली पछइ,
दूषण छ । ए० | २५ |
संस्तव (२७) करतां विद्या (२८) मंत्र (२६) प्रजुंजी लेह,
केवल बेउ दोष कहेई । ए० | २६।
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