SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 630
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *-- औपदेशिक गीतानि ( ४६१ ) धरम ना ए खरा आराधक, नाम जपउ नितमेव रे । भा. | १३ | भावना भावत चक्री भरत, पाम्यउ केवल ज्ञान रे । इम बीजा पणि जीव अनंता, धरता निर्मल ध्यान रे । भा. । १४ । भावना ए भली कीधी, मह तउ म्हारइ निमित रे । समयसुन्दर कहइ सहु भराउ जिम, पायइ जीव पवित्त रे । भा. । १५ । देव गति शप्ति गीतम् 具 बारे भेद तप तपड़ गति पामइ जी, संजम सतर प्रकार देवगति पामइ जी । साते खेत्रे वित बावरड् गति पामइ जी, पाइ पंचाचार देव गति पामइ जी ॥१॥ गति पाम जी पुण्य करइ जे जीव, देव गति पामह जी ॥ कणी ॥ प्रतिदिन पड़िकम कर गति पामइ जी, सामायिक एकत देव गति पाम जी । आहारविहराव सूत गति पामइ जी, सांभल सूत्र सिद्धांत देवगति परमई जी ॥ २॥ भद्रक जीव गुणे भला गति पामइ जी, जीवदया प्रतिपाल देवगति पाम जी । सदगुरु नी सेवा करइ गति पामइ जी, देव पूजड़ त्रिहुं काल देवगति पामइ जी ||३|| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy