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माया निवारण सज्झाय (४३१ ) जोगी जंगम तपसी सन्यासी, नगन थइ परवरीया रे। ऊधे मस्तक अगन धखंती, माया थी न ओसरिया रे ॥४॥ नाहना मोटा नर ने माया, नारी नै अधिकेरी रे। वली विशेष अधिकी व्यापइ, गरढा नई झाझेरी रे ॥५॥ शिवभूति सरिखो सत्यवादी, ससमें घोषं वाइरे। रतन देखि मन तेहनउ चलियउ, मरी नइ दुरगति जाइ रे॥६॥ एहवुजाणी भवियण प्राणी, माया मूकउ अलगी रे । समयसुन्दर कहइ सार छइ जगमें, धरम रंगसुविलगी रे॥७॥
माया निवारण गीतम्
___ राग-रामगिरी इहु मेरा इहु मेरा इहु मेरा इहु मेरा । जीव तुं विमासि नहीं कुछ तेरा ॥ इ०॥१। सासतां सोस करइ बहु तेरा, आंखि मीची तब जग अंधेरा इ.।२। माल मलूक तंबू का डेरा, सब कछु छोरि चलहगा इकेरा ।इ.।३। समयसुंदर कहड कहुँ क्या घणेरा, माया जीतह तिणका हूं चेरा ।४।
लोभ निवारण गीतम
राग-रामगिरी रामा रामा धनं धनं,
भमतउ रहइ तूं राति दिनं, भाई रा.।
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