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________________ ( २० ) महोपाध्याय समयसुन्दर गृही के पांच पहाड़, क्षत्रियकुण्ड, चम्पानगरी, पावापुरी, अंतरीक्ष और मक्षी श्रादि प्रदेशों में विचरण का अनुमान करते हैं; जो समुचित नहीं है। क्योंकि इस बात का कोई पुष्टप्रमाण नहीं है कि कवि का इन प्रदेशों में विचरण हुआ हो! किन्तु कवि की रचनाओं और प्रवास को देखते हुये यह सिद्ध है कि कवि का इन प्रदेशों में विचरण नहीं हुआ है किन्तु, प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान होने से स्तव रूप में नमस्कार-मात्र ही किया है। . कवि अपने प्रवास को तीर्थयात्रा और प्रचार का माध्यम बनाकर सफलता प्रदान कर रहा है। जहां जहां भी तीर्थस्थल आते हैं, वहां-वहां कवि मुक्त हृदय से भक्ति करता हुआ भक्त के रूप में दिखाई पड़ता है, नूतन स्तवन बनाकर अर्चा करता रहता है। कवि के तीर्थयात्रा सम्बन्धी कई स्तव भी ऐतिहासिक तथ्यों का उद्घाटन करते हैं। उदाहरण स्वरूप घंघाणी* और राणकपुर का स्तवन देखिये। ____ कवि विचरण करता हुआ अपने समाज में तो ज्ञान और धर्म का प्रचार करता ही रहा है। किन्तु साथ ही राजकीय अधिकारियों से भी सम्बन्ध स्थापित कर, अहिंसा-धर्म का भी मुक्तरूप से प्रचार करता रहा है। कवि अपनी वृत्ति को संकीर्ण न रखकर, केबल स्वसमुदाय में ही नहीं, अपितु सामान्य जनता और मुसल* कुसुमाञ्जलि पृ०२३२ । । वही पृ० २८ । इस स्तवन में कवि खरतरवसही का भी उल्लेख करता है:'खरतर वसही खांतीसुरे लाल,निरखंता सुख थाय मन मोहउ रे। जो कि वर्तमान में नहीं है। किन्तु सं० २००६ वैशाख शुक्ला में मैं यात्रार्थ राणकपुर गया था। वहां वेश्या का मन्दिर नाम से प्रसिद्ध मन्दिर के तज घर में पिप्पलक खरतर शाखा के प्रवतक आचार्य जिनवर्धनसूरि के पौत्र शिष्य, श्रोजिनचन्द्रसूरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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