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६ राग ३६ रागिणी नाम गर्भित श्री जिनचंद्रपूरि गीतम ( ३६५ )
मन सुद्ध अकबर मानतु है,
जग जाणत है परतीति इसी। जिणचन्द मुणिंद चिरं प्रतपो,
समयसुन्दर देत आसीस इसी ॥८॥
६गग३६रागिणी नामगर्भित श्रीजिनचंद्रसूरि गीतम् कीजइ अोच्छव संता सुगुरु केरउ,
सुललित वयण सुणि सखिमेरउ । । कहउ री सदेसा खरा गुरु आवतिया,
तिण वेला उलसी मेरी छतिया ॥१॥ आए सखी श्रीवंत मल्हारा,
खरतर गच्छ शृंगार हारा । आंकणी ॥ अइसा रंग वधावन कीजइ,
गुरु अभिराम गिरा अमृत पीजइ। अइसे गुरु कुं नित उलगउरी,
सुंदर शिरीरा गच्छपति अउरी ॥२॥ दुख के दार सुगुरु तुम हउ री,
गाऊं गुण गुरु केदारा गउरी ।
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