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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
भोजन मिष्ट मिलइ बहु भाते, शिष्य मिलइ सुविनीत सुजाते ॥२॥ वाधइ कीरति जग विख्याते, समयसुन्दर गौतम गुण गाते ॥३॥
एकादश गणधर गीतम्
राग-वेलाउल प्रात समइ उठि प्रणमियइ, गिरुया गणधार । वीर जिणंद वखाणिया, अनुपम इग्यार ॥प्रा०1१। इन्द्रभूति श्री अग्नि भूति, वायुभूति कहाय । व्यक्त सुधरमा स्वामि स्युं, रहियइ चित लाय ॥ प्रा०॥२॥ मंडित मौरिपुत्र ए, अकंपित उल्हास । अचल भ्राता आखियइ, मेतार्य प्रभास ॥प्रा०३। ए गणधर श्री वीर ना, सुखकर सुविशाल । थाज्यो माहरी वंदना, समयसन्दर तिहुँ काल ॥प्रा०।४।
गहुँली गीतम् प्रभु समरथ साहिब देवा रे, माता सरसति नी कर सेवा रे। सुध समकित ना फल लेवा रे, हुतो गाइस गुरु गुण मेवा रे।।
मुनिराया रे॥ गुण सतावीस जेहनइ पूरा रे, शुद्ध किरिया मांहि धूरा रे। तप बारे भेदे मरा रे, शियल व्रत सनूरा रे । मु.।२। गुरु जीवदया प्रतिपालइ रे, पंच महाव्रत सूधा पालइ रे। बेंतालीस दोष निवारइ रे, गुरु आतम तच विचारह रे । मु.॥३॥
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