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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर ( ११ ) सम्राट जहांगीर (जो उनको अपना गुरु मानता था ) को समझा कर इस हुक्म को रद्द करवाते हैं । * सं० १६७० में आश्विन कृष्णा द्वितीया को बिलाड़ा में आपका स्वर्गवास हुआ था । महामन्त्री कर्मचन्द्र बच्छावत और अहमदाबाद के प्रसिद्ध श्रेष्ठी संघपति श्री सोमजी शिवा आदि आपके प्रमुख उपासक थे । आपने सं० १६१७ विजयदशमी के दिवस पाटण में आचार्य प्रवर जिनबल्लभसूरि प्रणीत पौषधविधि प्रकरण पर ३५५४ श्लोक परिमाण की विशद टीका की रचना की, जो सैद्धान्तिक और वैधानिक दृष्टि से बड़ी ही उपादेय है । कवि के गुरु श्री सकलचन्द्रगरण हैं जो रोहड गोत्रीया हैं, और जो हैं युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के आद्य शिष्य । जिनचन्द्रसूरि ने सं० १६१२ में गच्छनायक बनने पर सर्वप्रथम नन्दी 'चन्द्र' ही स्थापित की थी । अतः इनकी दीक्षा भी सं० १६१२ के अन्त में या १६१३ के प्रारंभ में ही हुई होगी। अथवा सं० १६१४ में आचार्य श्री बीकानेर पधारे, वहीं हुई हो ! क्योंकि आपकी चरणपादुका नाल में रोड़ गोत्रियों द्वारा स्थापित है । अतः शायद ये बीकानेर * येभ्यस्तीर्थकर स्तदीय नृपतेः क्रोसं परित्यक्तवान, येभ्यः साधुजनाः तुरुष्कनृपतेर्देशे विहारं व्यधुः । ६ । [ हर्षनन्दन कृत मध्याह्नव्याख्यानपद्धति-प्रशस्तिः ] इसका विशेष अध्ययन करने के लिए देखें, नाहटा बन्धु .लखित युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि पुस्तक का 'महान् शासन सेवा' नामक ग्यारहवां प्रकरण । देखें, ताजमल बोथरा लि० संघपति सोमजी शिवा । णिः सकलचन्द्राख्यो, रोहड़ान्वय भूषणम् || १० || [ कल्पलता प्रशस्तिः ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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