SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महोपाध्याय समयसुन्दर दी घोषित किया था। सम्नाट अकबर के आमन्त्रण से सूरिजी मात से विहार कर सं० १६४८ फाल्गुन शुक्ला १२ के दिवस महोपाध्याय जयसोम, वाचनाचार्य कनकसोम, वाचक रत्ननिधान जो जोखमदार आचार्यों ने बच्चे पड्या वगर चाले नहि, ते थी - तपागच्छना विजयदानसूरि उक्त कुमतिकुहाल ग्रंथ सभा समक्ष पाणीमां बोलावी दीधो हतो अने से ग्रन्थनी नकल कोई नी पण पासे होय तो, ते अप्रमाण ग्रन्थ छे माटे तेमानु कथन कोइथे प्रमाणभूत मानवु नहि, श्रेवु जाहेर कयु हतु। खरतरगच्छ वाला पोताना मतनु प्रतिपादन कराववा भगीरथ प्रयत्न सेव्यो हतो; वातना प्रमाणमा जणावधान के आपणा नायक समयसुन्दर उपाध्यायजी ना सं. १६७२ मां रचेला समाचारी शतक मां सं० १६१७ मां पाटण मां थयेला एक प्रमाण पत्र नी नकल आपेली छे के जेमां एवी हकीकत छे के अभयदेवसूरि खरतरगच्छ मां थयेला छे, अ वात पाटणना ८४ गच्छो वाला माने छे, अने प्रमाण पत्र साचु जणाय छे, अने तेनो हेतु उपरनो कलहवाद शमाववा अर्थे हतो।" [ पृ० १५ टिप्पणी | जहाँ प्रवचन-परीक्षा जैसे प्रन्थ को अप्रामाणिक ठहराकर जल-शरण कराया गया और इसी कारण धर्मसागरजी को सात और बारह बोल निकाल कर गच्छ बाहर घोषित किया गया था। वहीं उन्हीं के विचारानुयायी उसी ग्रन्थ को प्रकाशित कर और उसी विचार सरणि को पुनः समाज पर लादकर जो समाज में विषमता का वीज बो रहे हैं, वह सचमुच में दयनीय विषय है। अस्तु, धर्मसागरजी कथित समस्त प्रश्नों का विशद-समाधान सह उत्तर के लिये देखें, मेरी लिखित बल्लभभारती प्रस्तावना । प देखें, उ० समयसुन्दर रचित समाचारी शतक 'श्री अभयदेव पूरेः खरतरगच्छेशत्वाधिकारः' पृ० १६ [प्र. जि० भ० सूरत] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy