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________________ ( २५८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि तेहनउ पुत्र हो इलापुत्र प्रधान कि, माल घणउ मन ऊलसइ ।१। वंस उपरि हो चड्यां केवल न्यान कि, इला पुत्र नइ ऊपनउ । संसार नउ हो नाटक निरखंत कि, संवेग सह नइ संपनउ ।।। वंस ऊपरि हो चड़ी खेलइ जेह कि, ते नटुया तिहां आविया । भली रामति हो रमइ नगरी मांहि कि, नर नारि मनि भाविया ।३।। नाडुया नइ हो महा रूप निधान कि, सोल वरस नी सुन्दरी । गीत गायइ हो वायइ डमरू हाथि कि, जाण प्रवीण जोवन भरि ।४।। इला पुत्र नउ हो मन लागउ तेथि कि, कहइ कन्या दयउ मुझ नइ । कन्या समउ हो सोनउ दय तोलि कि, तुरत नायक हुं तुझ नइ शिवं नायक कहइ हो आपूँ नहीं एह कि, कुटुम्ब आधार छइ कुंयरी । अम्हा मांहे हो आवि कला सीखि कि, पछडू परणाविस सुंदरी । ६ ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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