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________________ ( ४ ) महोपाध्याय समयसुन्दर हो, यह मानना उचित होगा। और जहां वादी हर्षनन्दन अपने समयसुन्दर गीत में "नवयौवन भर संयम संग्रह्यौ जी" कहते हुये नजर आरहे हैं, वहाँ यह स्पष्ट हो जाता है कि “ नवयौवनभर" परिपूर्ण तरुणावस्था का समय १६ से २० वर्ष की आयु को सूचित करता है। अतः दीक्षा का अनुमानतः संवत् १६२८-३० स्वीकार करते हैं तो जन्म सम्बत् १६१० के लगभग निश्चित होता है। इनका जन्म नाम क्या था और इनका प्रारम्भिक अध्ययन कितना था ? इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। किन्तु मरुधर प्रान्त जिसमें साचोर डिविजन में देवगिरा के पठन-पाठन का अत्यन्ताभाव होने से इनका अध्ययन दीक्षा पश्चात् ही हुआ हो, समीचीन मालूम होता है। युगप्रधान आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने सं० १६२८ में सांभलि के श्री संघ को पत्र दिया था, उसमें समयसुन्दर का नाम नहीं है। हो भी नहीं सकता, क्योंकि इस पत्र में उल्लिखित उपाधिधारक प्रमुख साधुओं के ही नामों का उल्लेख है। अतः सं० १६२८ में इस पत्र के देने के पूर्व या पश्चात् या आस-पास ही आचार्य श्री ने स्वहस्त * से इनको दीक्षा प्रदान कर अपने प्रमुख एवं प्रथम शिष्य श्री सकलचन्द्र गणि का शिष्य घोषित कर समयसुन्दर नाम प्रदान किया होगा। ___कवि अपने को खरतरगच्छ का अनुयायी बतलाता हुआ, खरतरगच्छ ॥ के प्राद्याचार्य श्रीवर्धमानसूरि के प्रगुरु से अपनी परम्परा सिद्ध करता है । इस परम्परा में कवि केवल 'गणनायकों' के नामों का ही उल्लेख कर रहा है । अष्टलक्षी प्रशस्ति के अनुसार कवि का वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है:* वादी हर्षेनन्दन कृत गुरु गीत "सई हथे श्रीजिनचन्द्र। 1 खरतरगच्छ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में देखें, मेरी लिखित वल्लभ भारती प्रस्तावना। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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