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________________ (२४०) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि नंदी सूत्र मई ज्ञान वखाण्यउ, ज्ञान ना पांच प्रकार रे। मति श्रुति अवधि अनइ मन पर्यव, केवल ज्ञान श्रीकार रे ।पां० २। मति अठावीस श्रुति चउदे वीस, अवधि छह असंख्य प्रकार रे । दोय भेद मन पर्यव दाख्यउं, केवल एक प्रकार रेप०३। चंद सूरज ग्रह नक्षत्र तारा, तेसू तेज आकास रे।। केवल ज्ञान समउ नहीं कोई, लोकालोक प्रकास रे पां.४। पारसनाथ प्रसाद करी नइ, माहरी पूरउ उमेद रे। समयसुंदर कहइ हूँ पण पामू, ज्ञान नो पांचमउ भेद रे पां.॥ .. मौन एकादशी स्तवनम् समवसरण बइठा भगवंत, धरम प्रकासइ श्री अरिहंत । बारे परषदा बइठी जुड़ी, मगसिर सुदि इग्यारस बड़ी ॥१॥ मल्लिनाथ ना तीन कल्याण, जनम दीक्षा नइ केवल ज्ञान । अर दीक्षा लोधी रूबड़ी, मिगसर सुदि इग्यारस बड़ी ॥२॥ नमि नइ उपनू केवन ज्ञान,पांच कल्याणक अति परधान । ए तिथिनी महिमा एवड़ी, मिगसर सुदी ग्यारस बड़ी ॥३॥ पांच भरत ऐरवत इम हीज, पांच कल्याजक हुवे तिम हीज। पंचास नी संख्या परगड़ी, मिगसर सुदी ग्यारस बड़ी ॥ ४ ॥ अतीत अनागत गिणतां एम, दोढ सै कल्याणकथाये तेम। कुण तिथि छह ए तिथि जेवड़ी, मिगसर सुदी ग्यारस बड़ी ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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